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Pearl farming

मोती की खेती से बम्पर कमाई कर रहा है बिहार का आईटी प्रोफेशनल

मोती की खेती से बम्पर कमाई कर रहा है बिहार का आईटी प्रोफेशनल

बिहार राज्य के बेगुसराई जनपद में सिंघोला निवासी कुणाल कुमार झा (Kunal Kumar Jha) ने अपने घर में ही छोटी सी जल की टंकी बनाकर मोती की खेती (pearl farming; moti ki kheti) करना शुरू कर दिया है। 

कुणाल का कहना है कि वह मोती की खेती से प्रतिवर्ष ३ लाख रूपए तक का लाभ प्राप्त करते हैं। रचनात्मक सोच, जुनून और मेहनत के बल पर मनुष्य असंभव को भी संभव बना देता है। 

कुणाल कुमार झा ने भी युवाओं के लिए एक नजीर पेश की है, हालाँकि कुणाल आईटी टेक्निकल के सफल विद्यार्धी रहे हैं, साथ ही प्राइवेट कंपनी में जॉब भी कर चुके हैं। 

लेकिन कुणाल अपनी आय की राह स्वयं चुनना चाहते थे, इसलिए उन्होंने नौकरी की अपेक्षा कृषि को प्राथमिकता दी और कृषि की सहायता से अच्छा खासा मुनाफा भी कमा रहे हैं। घर में अनोखे अंदाज से खेती करने की प्रणाली की बात पुरे बेगूसराय में चर्चा का विषय बन चुकी है। 

आजकल कृषि क्षेत्र में आधुनिक तकनीकों का उपयोग बढ़ चुका है, साथ ही नए नए कृषि उपकरण भी खेती किसानी को बेहतर बनाने के लिए दिनो दिन इजात हो रहे हैं। ऐसे में समझदारी से कृषि करके किसान अच्छा खासा मुनाफा कमा सकते हैं, कुणाल ने यह बात साबित भी करदी है।

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कुणाल किस प्रकार करते है मोती की खेती

कुणाल कुमार झा ने अपने घर में १० बाई १० वर्ग फीट की टंकी से ही मोती की खेती को सुचारु रखा हुआ है, कुणाल मोती को देवताओं का स्वरुप भी प्रदान करते हैं, जो समुद्र में रेती के कारण नहीं बन पाता है। 

कुणाल प्रभु श्री राम, कृष्ण भगवान एवं गणेश जी जैसे अन्य स्वरूपों की कलाकृति बनाते हैं। यह मोती लगभग १० महीने में बनकर तैयार होता है, कुणाल मोती की खेती रचनात्मक तरीके से करके अच्छा खासा मुनाफा अर्जित कर लेता है।

कुणाल ने कृषि को प्राथमिकता क्यों दी

कुणाल कुमार झा आईटी प्रोफेशनल हैं उन्होंने नौकरी करते समय ही खेती करने का निर्णय लिया था। कुणाल का कहना है कि देश के अधिकतर नौजवान बेरोजगारी के शिकार हैं। 

युवाओं को आजीविका के लिए उनकी मेहनत से भी कम आय वाली नौकरी करनी पड़ती है और उसके लिए भी उनको अन्य राज्यों के शहरों में नौकरी करने जाना पड़ता है। 

इससे अच्छा, युवा आधुनिक तकनीक और विवेक का इस्तेमाल करके स्वयं का रोजगार उत्पन्न करें। आज देश में रोजगार के बहुत सारे अवसर हैं, युवाओं को अपने नजरिये और सोचने की दिशा को बदलने की बेहद आवश्यकता है।

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मोती की खेती का बाजार में कितना दबदबा है

बाजार में मोती की काफी मांग है, गुजरात तक से व्यापारी खुद आकर मोती खरीदकर ले जाते हैं। कुणाल की ये अद्भुत खेती क्षेत्र और परिवार के लोगों को खुशी प्रदान कर रही है। 

मोती की खेती की चर्चा जोरशोर से आसपास के जिलों में भी हो रही है। कुणाल से मोती की खेती के बारे जानने के लिए काफी दूर से किसान आ रहे हैं, कुणाल खेती की पूरी विधि किसानों के साथ साझा भी करते हैं। कुणाल कुमार झा ने मोती की खेती का महत्त्व भी जिले के किसानों को अच्छी तरह बताया है।

केमिस्ट्री करने वाला किसान इंटीग्रेटेड फार्मिंग से खेत में पैदा कर रहा मोती, कमाई में कई गुना वृद्धि!

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एकीकृत कृषि प्रणाली (इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम)

जिस तरह मौजूदा दौर के क्रिकेट मेें ऑलराउंड प्रदर्शन अनिवार्य हो गया है, ठीक उसी तरह खेती-किसानी-बागवानी में भी मौजूद विकल्पों के नियंत्रित एवं समुचित उपयोग एवं दोहन का भी चलन इन दिनों देखा जा रहा है। 

क्रिकेट के हरफनमौला प्रदर्शन की तरह, खेती किसानी में भी अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) का चलन जरूरी हो गया है। 

क्या कारण है कि प्रत्येक किसान उतना नहीं कमा पाता, जितना आधुनिक तकनीक एवं जानकारियों के समन्वय से कृषि करने वाले किसान कमा रहे हैं। 

सफल किसानों में से किसी ने जैविक कृषि को आधार बनाया है, तो किसी ने पारंपरिक एवं आधुनिक किसानी के सम्मिश्रण के साथ अन्य किसान मित्रों के समक्ष सफलता के आदर्श स्थापित किए हैं। 

ऐसी ही युक्ति है इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी 'एकीकृत कृषि प्रणाली'। यह कैसी प्रणाली है और कैसे काम करती है, जानिये। 

कुछ हट कर काम किसानी करने वालों की फेहरिस्त में शामिल हैं, बिहार के बेगूसराय में रहने वाले 48 वर्षीय प्रगतिशील किसान जय शंकर कुमार भी। 

पहले अपने खेत पर काम कर सामान्य कमाई करने वाले केमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएट जय शंकर की सालाना कमाई में अब इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) से किसानी करने के कारण आश्चर्यजनक रूप से वृद्धि हुई है।

साधारण किसानी करते थे पहले

सफलता की नई इबारत लिखने वाले जय शंकर सफल होने के पहले तक पारंपरिक तरीके से पारंपरिक फसलों की पैदावार करते थे। 

इन फसलों के तहत वे मक्का, गेहूं, चावल और मोटे अनाज आदि की फसलें ही अपने खेत पर उगाते थे। इन फसलों से हासिल कम मुनाफे ने उन्हें परिवार के भरण-पोषण के लिए बेहतर मुनाफे के विकल्प की तलाश के लिए प्रेरित किया।

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ऐसे मिली सफलता की राह

खेती से मुनाफा बढ़ाने की चाहत में जय शंकर ने कई प्रशिक्षण एवं जागरूकता कार्यक्रमों में सहभागिता की। इस दौरान उन्होंने कृषि विज्ञान केंद्र (केवीके), बेगूसराय के वैज्ञानिकों से अपनी आजीविका में सुधार करने के लिए सतत संपर्क साधे रखा।

पता चली नई युक्ति

कृषि सलाह आधारित कई सेमिनार अटैंड करने के बाद जय शंकर को इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) के बारे में पता चला।

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम क्या है ?

इंटीग्रेटेड फार्मिंग सिस्टम (Integrated Farming System) यानी एकीकृत कृषि प्रणाली खेती की एक ऐसी पद्वति है, जिसके तहत किसान अपने खेत से सम्बंधित उपलब्ध सभी संसाधनों का इस्तेमाल करके कृषि से अधिक से अधिक लाभ प्राप्त करता है। 

कृषि की इस विधि से छोटे व मझोले किसानों को अपनी घरेलू आवश्यकताओं की पूर्ति के साथ कृषि से अत्यधिक लाभ प्राप्त होता है। 

वहीं दूसरी ओर फसल उत्पादन और अवशेषों की रीसाइकलिंग (recycling) के द्वारा टिकाऊ फसल उत्पादन में मदद मिलती है। इस विधि के तहत मुख्य फसलों के साथ दूसरे खेती आधारित छोटे उद्योग, पशुपालन, मछली पालन एवं बागवानी जैसे कार्यों को किया जाता है।

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पकड़ ली राह

जय शंकर को किसानी का यह फंडा इतना बढ़िया लगा कि, उन्होंने इसके बाद इस विधि से खेती करने की राह पकड़ ली। एकीकृत प्रणाली के तहत उन्होंने मुख्य फसल उगाने के साथ, बागवानी, पशु, पक्षी एवं मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट बनाने पर एक साथ काम शुरू कर दिया। उन्हें केवीके ने भी तकनीकी रूप से बहुत सहायता प्रदान की।

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मोती का उत्पादन (Pearl Farming)

खेत पर लगभग 0.5 हेक्टेयर क्षेत्र में मछली पालने के लिये बनाए गए तालाब के ताजे पानी में, वे मोती की भी खेती कर रहे हैं।

वर्मीकम्पोस्ट के लिए मदद

जय शंकर की वर्मीकम्पोस्ट उत्पादन में रुचि और समर्पण के कारण कृषि विभाग, बिहार सरकार ने उन्हें 25 लाख रुपये की वित्तीय सहायता प्रदान की है। वे अब हर साल 3000 मीट्रिक टन से ज्यादा वर्मीकम्पोस्ट उत्पादित कर रहे हैं।

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बागवानी में भी आजमाए हाथ

बागवानी विभाग ने भी जय शंकर की लगन को देखकर पॉली हाउस और बेमौसमी सब्जियों की खेती के अलावा बाजार में जल्द आपूर्ति हेतु पौधे लगाने के लिए जरूरी मदद प्रदान की। 

केवीके, बेगूसराय से भी उनको तकनीकी रूप से जरूरी मदद मिली। केवीके वैज्ञानिकों ने एकीकृत कृषि प्रणाली मॉडल में उन्हें सुधार और अपडेशन के लिए समय-समय पर जरूरी सुझाव देकर सुधार करवाए।

कमाई में हुई वृद्धि

एक समय तक जय शंकर की पारिवारिक आय तकरीबन 27000 रुपये प्रति माह या 3.24 लाख रु प्रति वर्ष थी। अब एकीकृत कृषि प्रणाली से खेती करने के कारण यह अब कई गुना बढ़ गयी है। 

मोती की खेती, मत्स्य पालन, वर्मीकम्पोस्ट, बागवानी और पक्षियों के पालन-विक्रय के समन्वय से अब उनकी यही आय प्रति माह 1 लाख रुपये या प्रति वर्ष 12 लाख से अधिक हो गई है।

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खेत में मोती की चमक बिखेरने वाले जय शंकर अब दूसरों की तरक्की की राह में भी उजाला कर रहे हैं। वे अब बेगूसराय जिले के केवीके से जुड़े ग्रामीण युवाओं की मेंटर ट्रेनर के रूप में मदद करते हैं। 

साधारण नजर आने वाला उनका खेत अब 'रोल मॉडल' के रूप में कृषि मित्रों की राह प्रशस्त कर रहा है। उनका मानना है, दूसरे किसान भी उनकी तरह अपनी कृषि कमाई में इजाफा कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए उनको, उनकी तरह समर्पण, लगन, सब्र एवं मेहनत भी करनी होगी।

'मोती की खेती' ने बदल दी किताब बेचने वाले नरेन्द्र गरवा की जिंदगी, अब कमा रहे हैं सालाना पांच लाख रुपए

'मोती की खेती' ने बदल दी किताब बेचने वाले नरेन्द्र गरवा की जिंदगी, अब कमा रहे हैं सालाना पांच लाख रुपए

जयपुर (राजस्थान), लोकेन्द्र नरवार

आज हम आपको बता रहे हैं मेहनत और लगन की एक और कहानी। राजस्थान के रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा जो कभी किताबें बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे, 

आज खेती से सालाना पांच लाख रुपए से ज्यादा कमा रहे हैं। जी हां, नरेन्द्र गरवा ने किताब बेचना छोड़ मोती की खेती (Pearl Farming) शुरू कर दी। और आज 'मोती की खेती' ने नरेन्द्र गरवा की जिंदगी बदल दी है। 

जो लोग कहते हैं कि खेती-किसानी में कुछ नहीं रखा है। नरेन्द्र गरवा उन लोगों के लिए एक मिशाल हैं। उन्हें नरेन्द्र की मेहनत और लगन से सीखना चाहिए।

राजस्थान में किशनगढ़ रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा

गूगल से ढूंढा था 'मोती की खेती' का प्लान

- राजस्थान में किशनगढ़ रेनवाल के रहने वाले नरेन्द्र गरवा जब किताब बेचते थे, तो मेहनत करने के बाद भी उन्हें काफी कुछ मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। 

एक दिन नरेन्द्र ने गूगल पर नए काम की तलाश की। गूगल से ही उन्हें 'मोती की खेती' का पूरा प्लान मिला और निकल पड़े मोती की खेती करने।

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शुरुआत में पागल समझते थे लोग

- नरेन्द्र गरवा ने सबसे पहले अपने घर की छत पर मोती की बागवानी शुरू की थी। तब लोग नरेन्द्र को पागल समझते थे। बाहर वालों के साथ साथ घर के लोग भी कहते थे कि इसका दिमाग खराब हो गया है। 

परिवार के लोगों ने भी पागल कहना शुरू कर दिया था। लेकिन नरेन्द्र के जज्बे, मेहनत और लगन ने सबको परास्त कर दिया। आज वही लोग नरेन्द्र की तारीफों के पुल बांधते देखे जा सकते हैं।

30-35 हजार में शुरू किया था काम, आज 300 गज के प्लाट में लगा है कारोबार

- तकरीबन चार साल पहले नरेन्द्र गरवा ने सीप (Oyster) की खेती की शुरुआत की थी। हालांकि शुरुआत में उन्हें इसकी कोई जानकारी नहीं थी। 

सबसे पहले नरेन्द्र उडीसा में सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर एक्वाकल्चर (Central Institute of Freshwater Aquaculture) के मुख्यालय गए और यहां से लौटने के बाद महज 30-35 हजार रुपए की छोटी सी रकम लगाकर सीप से मोती बनाने की एक बहुत छोटी सी इकाई शुरू की। वर्तमान में नरेन्द्र 300 गज के प्लाट में लाखों रुपए का काम कर रहे हैं।

मुम्बई, गुजरात और केरल से खरीदते हैं सीप

- अपने प्लाट में ही नरेन्द्र ने छोटे-छोटे तालाब बना रखे हैं। इन तालाबों के अंदर वो मुम्बई, गुजरात और केरल के मछुआरों से सीप (बीज) खरीदकर लाते हैं। 

वह अच्छी खेती के किये हमेशा 1000 सीप एक साथ रखते हैं, जिससे साल अथवा डेढ़ साल के अंदर डिजाइनर व गोल मोती मिल ही जाते हैं।

पूर्व मुख्यमंत्री वशुधंरा व पूर्व कृषि मंत्री सैनी कर चुके हैं तारीफ

Vasundhara Raje Scindia 

- अपनी मेहनत और लगन से 'मोती की खेती' में नरेन्द्र गरवा ने महारत हांसिल की है। राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री वशुधंरा राजे सिंधिया और कृषि मंत्री प्रभुलाल सैनी ने नरेन्द्र के प्रयास और सफलता की तारीफ की थी। आज भी नरेन्द्र उन दिनों को अपनी जिंदगी के सबसे यादगार पल मानते हैं।

2 साल में मोती की खेती से किसान बसंत ने कमाए 18 लाख रुपए

2 साल में मोती की खेती से किसान बसंत ने कमाए 18 लाख रुपए

हरियाणा राज्य के फतेहाबाद जिले के गांव सिंबलवाला में रहने वाले किसान बसंत सैनी ने सिप की खेती कर 2 साल में 18 लाख रुपए कमा लिए है। सिप की खेती के लिए उन्होंने 3 साल पहले कोरोना काल के वक्त अपना मन बनाया था।

लगभग डेढ़ साल तक उन्होंने इस खेती पर स्टडी की और सितम्बर 2023 में उन्होंने सिप की खेती का कार्य शुरू कर दिया। सिप की खेती में लगभग 4 लाख रुपए का खर्च आया। उन्होंने बताया सिप की खेती काफी लाभदायक है। 

बसंत सैनी डबल एमए करे हुए है उन्होंने सिप की खेती आधे कनाल में की थी जिससे उन्हें इतना फायदा हुआ। सिंबलवाला गांव में वो ऐसे अकेले व्यक्ति है जो सिप की खेती कर रहे है। 

बसंत सैनी ने बताया बाजार में मोतियों की काफी डिमांड है इसलिए उन्होंने इसकी खेती शुरू की। साथ ही उन्होंने यह भी बताया सिप की एक एकड़ खेती से लाखों रुपया कमाया जा सकता है। 

बसंत सैनी ने बताया सिप की खेती के लिए ट्रेनिंग बहुत जरूरी है। सिप की खेती के लिए पहले सिप लानी पड़ती है , जो हमारे आस पास नहीं मिलती है वो बहार से मँगानी पड़ती है। 

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सिप दो प्रकार की होती है एक जो समुन्द्र में मिलती है और दूसरी जो साफ़ पानी में तैयार की जातीं है। सिप की खेती के लिए नेहरी पानी की ज्यादा आवश्यकता होती है। 

सिप के अंदर न्यूक्लियस डालकर सिप को फ्रेश पानी में डाल दिया जाता है। इसके बाद पानी में फीड डाली जातीं है क्योंकि अगर पानी में लाल कीड़े पड़ गए तो वह सिप को नष्ट कर देते है।

पानी की क्वालिटी 

मोती की अच्छी किस्म के लिए पानी की हर हफ्ते जांच होती है। पानी को चेक करने के लिए पानी के टैंक में हर हफ्ते अमोनिया, टीडीएस और ऑक्सीजन चेक करना होता है। 

मोती की खेती में पानी एक अहम भूमिका निभाता है। मोती को तैयार होने में लगभग 2 साल का समय लगता है। लेकिन सवा साल में आधा मोती तैयार हो जाता है लेकिन पूरे मोती को पाने के लिए 2 साल तक इंतजार करना पड़ता है। सिप के अंदर से मोती को बड़ी सधानी से निकाला जाता है, सावधानी न बरतने पर सिप मर भी सकती है। 

कहाँ - कहाँ होता है प्रयोग ?

मोती की कीमत उसकी शेप, वजन और गुणवत्ता के आधार पर तय की जातीं है। एक मोती की कीमत 5000 से 50000 हो सकती है। आभूषण बनाने के अलावा इसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाइयों में भी किया जाता है। 

छोटी छोटी मूर्तियां बनाने और महिलाओं के कॉस्मेटिक मेकअप बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। बाजार में मोती की बहुत कीमत है जितनी गुणवत्ता वाला मोती होगा उसकी उतनी ही ज्यादा कीमत होगी।